इसीलिए बढ़ गए
भाव आजाद
दलालों के
सिक्के बहुत
कीमती हैं नकली
टकसालों के।
समय देखकर आचरणों ने
रंग बदल डाला
हर काला सफेद लगता है
हर सफेद काला
नहीं किसी कुंजी में
हल मिल रहे
सवालों के।
आँखों में मायूस हुई
बैठी खुद्दारी है
लोकतंत्र के बिगड़े हुए
चलन पर भारी है
दीवारों ने
छीन लिए सुख
घर के आलों के।
रकम, सियासत, कुर्सी की
दीवार अटूटी है
जब चाहा तब न्याय तंत्र
की अस्मत लूटी है
चरण चिह्न पुज रहे
राजपथ पर
नक्कालों के